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आईबीसी की धारा 95 और 101 की वैधता को चुनौती देने वाली दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका

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दिल्ली उच्च न्यायालय एमके ऑटोमोबाइल इंडस्ट्रीज लिमिटेड नामक एमएसएमई के निलंबित निदेशकों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की धारा 95 और 101 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। इसी के मद्देनजर, न्यायमूर्ति मनमोहन और नवीन चावला की खंडपीठ ने केंद्र सरकार, आरबीआई, आईबीसी बोर्ड और ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) को नोटिस जारी किए।

आईबीसी की धारा 95 में ऋणदाताओं के एक समूह द्वारा आवेदन के बाद दिवालियापन समाधान प्रक्रिया शुरू करने का प्रावधान है।

याचिका में कहा गया है कि आईबीसी की धारा 240ए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) के गारंटर को, जिसके खिलाफ कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया की कार्यवाही शुरू की गई है, समाधान योजना प्रस्तावित करने की अनुमति देती है। हालांकि, धारा 95 द्वारा इसकी अनुमति नहीं दी गई है। यह धारा एमएसएमई कॉर्पोरेट देनदार के गारंटरों को एक अलग वर्ग के रूप में निर्धारित करने में विफल रहने और उन्हें गैर-एमएसएमई के व्यक्तिगत गारंटर के रूप में मानने के कारण संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है।

याचिका में आगे कहा गया है कि एक बार जब आईबीसी की धारा 95 के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ समाधान प्रक्रिया शुरू हो जाती है, तो उन्हें धारा 101 के तहत अपनी परिसंपत्तियों से निपटने की अनुमति नहीं दी जाएगी और इस प्रकार वे कॉरपोरेट देनदार के दिवालियापन समाधान के लिए धन उपलब्ध कराने में असमर्थ होंगे, जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता कॉरपोरेट देनदार को बहाल करने के लिए समाधान योजना दायर करने से वंचित हो जाएंगे।

अंत में, याचिकाकर्ताओं ने आईबीसी की धारा 95 को अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की।


लेखक: पपीहा घोषाल