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POSH आदेश के तहत पक्षों की पहचान की सुरक्षा के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के दिशानिर्देश को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर

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शीर्ष अदालत अधिवक्ता आभा सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जीएस पटेल द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) और नियमों के तहत एक मामले में पक्षों की पहचान की रक्षा के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए थे।

24 सितंबर, 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पक्षों और वकीलों को न्यायालय की विशेष अनुमति के बिना किसी भी निर्णय या फाइलिंग की सामग्री को मीडिया में प्रकट करने या सोशल मीडिया सहित किसी भी माध्यम से कोई भी जानकारी प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगा दिया। न्यायालय ने कहा कि इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं थे। इसलिए, अधिनियम के तहत कार्यवाही में आकस्मिक प्रकटीकरण से भी पक्षों की पहचान की रक्षा के लिए एक कार्य प्रोटोकॉल निर्धारित करने के लिए आगे बढ़ा।

याचिका में तर्क दिया गया है कि हाईकोर्ट का आदेश अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन करता है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। याचिका में महिलाओं को दिए जाने वाले कानूनी अधिकारों में सार्वजनिक चर्चा के महत्व पर भी ध्यान आकर्षित किया गया है। याचिका में आगे चेतावनी दी गई है कि इस तरह के आदेश से पीड़ितों को अदालतों में जाने से हतोत्साहित करने का “लहर प्रभाव” हो सकता है।

याचिकाकर्ता ने अदालत को यह भी बताया कि दिशानिर्देश जारी होने के बाद, कई संगठनों और कार्यकर्ताओं ने बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गौतम पटेल को पत्र लिखकर दिशानिर्देश वापस लेने की मांग की।


लेखक: पपीहा घोषाल