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अपराध में इस्तेमाल हथियारों की बरामदगी दोषसिद्धि के लिए अनिवार्य शर्त नहीं हो सकती - दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुनः पुष्टि की कि किसी अपराध को अंजाम देने में प्रयुक्त हथियारों की बरामदगी किसी अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए आवश्यक शर्त नहीं है।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी दिल्ली के कड़कड़डूमा न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के एक निर्णय के विरुद्ध अपील पर सुनवाई कर रहे थे। अपीलकर्ता पर शिकायतकर्ता युनुस और उसके भाई साहिल की हत्या का प्रयास करने और उन्हें गंभीर चोट पहुँचाने का आरोप था। आरोपी को 6 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी, इसलिए उच्च न्यायालय में अपील की गई।
न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा दी गई दलील और युनुस और साहिल की गवाही में घटना के समय के संबंध में काफी विरोधाभास है। न्यायालय ने आगे कहा कि
हत्या के प्रयास के मामले में हथियार बरामद न होने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि यूनुस और साहिल की गवाही एक जैसी थी।
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में चोटें चाकू से और गर्दन पर लगी थीं। शिकायतकर्ता ने यह बयान दिया कि अपीलकर्ता ने पहले भी उस पर हमला किया था, जिसके अनुसार पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई थी। न्यायालय ने दोनों के बीच पहले से मौजूद दुश्मनी को ध्यान में रखा, इस तथ्य को भी कि शिकायतकर्ता को घटना के दौरान दो बार चोटें आई थीं। यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता का अपेक्षित इरादा था कि ऐसी चोटें घातक हो सकती थीं।
उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन सजा कम कर दी।
लेखक: पपीहा घोषाल