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भरण-पोषण का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है, इसे समझौते पर हस्ताक्षर करके अस्वीकार नहीं किया जा सकता - गुवाहाटी उच्च न्यायालय

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मामला: रंजीत कौर बनाम पवित्तर सिंह

गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि पति अपनी पत्नी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करके अपने दायित्व से बच नहीं सकता। गुजारा भत्ता पाना पत्नी का वैधानिक अधिकार है।

हाईकोर्ट एक पत्नी की याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिसने 26 जून, 2019 को पत्नी को भरण-पोषण देने से इस आधार पर इनकार कर दिया था कि उसने अपने पति के साथ एक समझौता किया था, जिसमें वह सहमत थी कि उसके खर्च वहन किए जाएंगे। अपने पैतृक घर पर रहते हुए उसकी देखभाल उसके माता-पिता द्वारा की जाएगी।

10 मार्च 2016 को दोनों की शादी हुई। तीन महीने के भीतर ही पत्नी ने आरोप लगाया कि पति और ससुराल वालों ने उसे प्रताड़ित किया। पत्नी ने आपराधिक मामला दर्ज कराया और फिर पति और उसके माता-पिता ने मामले को सुलझाने की कोशिश की। समझौते के दौरान, पत्नी कथित तौर पर इस बात पर सहमत हो गई थी कि अपने माता-पिता के घर पर रहने के दौरान, उसके खर्च का ध्यान उसके माता-पिता रखेंगे।

पत्नी के अनुसार, पति उसे वापस ससुराल ले जाने के लिए कभी नहीं लौटा, इसलिए उसने स्नातक की पढ़ाई के दौरान अपने लिए भरण-पोषण की मांग की।

हालांकि, पति ने दावा किया कि पत्नी व्यभिचारी जीवन जी रही थी। उसने पत्नी की डायरी का हवाला दिया, जिसमें उसने शादी से पहले किसी दूसरे आदमी के प्रति झुकाव होने की बात कबूल की थी। उसने आगे पति-पत्नी के बीच हुए समझौते का हवाला दिया।

आयोजित

उच्च न्यायालय ने पाया कि पत्नी जनवरी 2017 से अपने माता-पिता के घर पर रह रही थी और पति ने उसे कोई भरण-पोषण नहीं दिया, जबकि वह अपनी पढ़ाई कर रही थी। समझौते के संबंध में न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यह धारा 125 सीआरपीसी के तहत शून्य था।

इसलिए, उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और निचली अदालत को मामले पर नये सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।