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सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के भाग III को अमान्य घोषित करने की मांग वाली याचिका पर 5 हजार का जुर्माना लगाया।

मामला: ह्यूमन ड्यूटीज फाउंडेशन बनाम भारत संघ और अन्य
बेंच: जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय
सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय के कोर्ट रूम 5 में हुई एक घटना ने इस बात को दर्शाया कि जनहित याचिका किस हद तक गिर चुकी है और उसका दुरुपयोग किया जा रहा है।
संविधान के अनुच्छेद 32 का उपयोग करते हुए, एक याचिकाकर्ता ने न्यायालय से अनुरोध किया कि संविधान के भाग III (जिसका अनुच्छेद 32 एक भाग है), जिसमें मौलिक अधिकारों का प्रावधान है, को अमान्य घोषित किया जाए।
याचिकाकर्ता, ह्यूमन ड्यूटीज फाउंडेशन नामक एक संगठन ने भारत के संविधान के भाग 3 को अधिकार-बाधित और आरंभ से ही अमान्य घोषित करने, संविधान की प्रस्तावना की सही भावना के विपरीत और प्राकृतिक कानून के विरुद्ध रिट जारी करने का अनुरोध किया।
पीठ इस विडंबना पर अपनी निराशा नहीं छिपा सकी कि मौलिक अधिकार को शून्य घोषित करने की मांग वाली याचिका संविधान के भाग III में निहित मौलिक अधिकारों के तहत दायर की गई थी।
पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने यह रिट याचिका पूरी तरह से गुमराह होकर दायर की है। इसके मद्देनजर, पीठ याचिकाकर्ता को रिट याचिका वापस लेने की अनुमति देने के लिए इच्छुक थी, हालांकि बिना शर्त नहीं।
पीठ ने याचिकाकर्ता को एक महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति के पास 5,000 रुपये जमा करने का निर्देश दिया।