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शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा कि यूपी सरकार ने विध्वंस के दौरान कानूनों का अनुपालन कैसे किया
पीठ: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ की अवकाश पीठ
शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार से कहा कि वह कानून द्वारा निर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार ही तोड़फोड़ करे। अदालत ने यूपी सरकार को यह दिखाने के लिए तीन दिन का समय दिया कि किस तरह से कानून के अनुसार तोड़फोड़ की गई।
पीठ जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर एक आवेदन पर विचार कर रही थी, जिसमें राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना आगे कोई भी ध्वस्तीकरण न किया जाए।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि राज्य सरकार ने पूर्व भाजपा प्रवक्ता द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी के बाद कथित तौर पर हिंसक घटनाओं में शामिल लोगों की संपत्तियों को बुलडोजर से गिरा दिया। वकील ने तर्क दिया कि तोड़फोड़ करना राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नगरपालिका कानूनों के खिलाफ है। वकील ने शहरी नियोजन अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि तोड़फोड़ शुरू करने से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना आवश्यक है।
सॉलिसिट जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता का इस मामले में कोई अधिकार नहीं है। चूंकि कानून के उल्लंघन का आरोप है, इसलिए किसी पीड़ित पक्ष को आगे आकर आरोप लगाना चाहिए कि बिना कोई नोटिस दिए ही तोड़फोड़ की गई।
याचिकाकर्ता ने मकानों को गिराने में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के निर्देश देने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि कानपुर में हिंसा के बाद कई अधिकारियों ने सोशल मीडिया पर कहा कि संदिग्धों की संपत्तियों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें गिराया जाना चाहिए, जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।
पीठ ने पूछा कि क्या ध्वस्त की गई संपत्तियों के खिलाफ कोई पूर्व कार्यवाही की गई थी। इस पर राज्य ने जवाब दिया - यह कहना उचित है कि ये अवैध निर्माण थे।