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पितृसत्तात्मक परिवार के किसी रिश्तेदार का मान्य जाति प्रमाणपत्र, अन्य रिश्तेदारों की सामाजिक स्थिति का निर्णायक सबूत - सुप्रीम कोर्ट
हाल ही में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति का मान्य जाति प्रमाणपत्र उसके पितृसत्तात्मक रिश्तेदार की सामाजिक स्थिति का निर्णायक सबूत है। भारत में अधिकांश परिवार पितृसत्तात्मक पारिवारिक व्यवस्था का पालन करते हैं और इस प्रकार, सभी सदस्यों को एक ही जाति का माना जाना चाहिए।
न्यायालय ने यह भी कहा कि एक व्यक्ति का निर्णायक सबूत किसी अन्य व्यक्ति के लिए निर्णायक सबूत के रूप में माना जाएगा यदि वह अन्य व्यक्ति उस व्यक्ति का पैतृक रिश्तेदार है जिसके पास निर्णायक सबूत का दस्तावेज है।
न्यायमूर्ति एस बी शुक्रे और न्यायमूर्ति जी ए सनप की खंडपीठ ने यह आदेश भारत तायडे द्वारा ठाणे स्थित छानबीन समिति के उस आदेश के खिलाफ दायर रिट याचिका पर पारित किया, जिसमें उनके जाति प्रमाण पत्र को दूसरी बार अमान्य करार दिया गया था।
याचिकाकर्ता के अनुसार, इसी मुद्दे पर यह उनकी दूसरी जनहित याचिका थी, क्योंकि उनकी पहली रिट याचिका का निपटारा उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर, 2016 को कर दिया था, जिसमें जांच समिति को अनुसूचित जनजाति 'टोकरे कोली' पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया था।
हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के चचेरे भाई को नासिक जिले की जांच समिति ने वैधता प्रमाणपत्र दिया है। इस तरह के वैध प्रमाणपत्र के बावजूद, ठाणे समिति ने टोकरे कोली समुदाय से संबंधित होने के तायडे के दावे पर विचार करने से इनकार कर दिया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि "जांच समिति ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून की घोर अवहेलना की है। यदि कोई अर्ध-न्यायिक या कोई न्यायिक प्राधिकरण न्यायिक अनुशासन बनाए रखने में विफल रहता है, तो इसका परिणाम न्याय प्रणाली में गिरावट के रूप में सामने आएगा और हमारे नागरिकों के सम्मान को कमतर आंकेगा।"
पीठ ने ठाणे समिति के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर वैध प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया।