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एंग्लो-इंडियन फेडरेशन द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर संसद और राज्य विधानसभाओं में आरक्षण की मांग की गई

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बेंच : कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला

एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन के महासंघ ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर संसद और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के आरक्षण को बहाल करने की मांग की। याचिका में संविधान के 104वें संशोधन को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए सीटों के आरक्षण को दस साल की अवधि के लिए बढ़ा दिया गया था। हालांकि, इसने एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए इसे बंद कर दिया।

पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे पर संसदीय समिति की बहस की रिपोर्ट छह सप्ताह के भीतर दाखिल करे ताकि इस मुद्दे पर बहस के दौरान संविधान निर्माताओं के विचारों को समझा जा सके।

याचिका में तर्क दिया गया है कि एंग्लो-इंडियन समुदाय को मनमाने तरीके से हटाया जाना समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने कहा कि हाल ही में हुई जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में केवल 296 एंग्लो-इंडियन बचे हैं। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील कुरियाकोस वर्गीस ने जवाब दिया कि एंग्लो-इंडियन समुदाय को उनकी कम संख्या के कारण निशाना बनाया जा रहा है।

हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि अगर ये प्रावधान जारी रहे तो समुदाय समाज में कैसे एकीकृत होगा। एंग्लो-इंडियन समुदाय के समाज के साथ घुलने-मिलने और फिर नेता के रूप में उभरने पर कोई रोक नहीं है।