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CrPC Section 257 – Withdrawal Of Complaint

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1. CrPC की धारा 257 का कानूनी प्रावधान

1.1. धारा 257: शिकायत की वापसी -

2. समन मामला क्या होता है? 3. धारा 257 का उद्देश्य

3.1. 1. शिकायतकर्ता के लिए लचीलापन

3.2. 2. समझौते को प्रोत्साहन

3.3. 3. न्यायिक संसाधनों का कुशल उपयोग

3.4. 4. शिकायतकर्ता की सुरक्षा

4. धारा 257 के तहत शिकायत वापसी की प्रक्रिया

4.1. चरण 1: वापसी के लिए अनुरोध

4.2. चरण 2: मजिस्ट्रेट द्वारा विचार

4.3. चरण 3: मजिस्ट्रेट की स्वीकृति

4.4. चरण 4: दस्तावेजीकरण

5. शिकायतकर्ताओं के लिए प्रभाव

5.1. स्वतंत्रता और अधिकार

5.2. अनावश्यक बोझ से बचाव

5.3. दबाव या धमकी का जोखिम

6. आरोपी के लिए प्रभाव

6.1. लंबी मुकदमेबाज़ी से राहत

6.2. कानूनी उत्पीड़न से सुरक्षा

7. शिकायत वापसी के उदाहरण

7.1. उदाहरण 1: आपसी समझौता

7.2. उदाहरण 2: सोच में बदलाव

7.3. उदाहरण 3: शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति

8. धारा 257 के दुरुपयोग से सुरक्षा

8.1. दबाव से सुरक्षा

8.2. कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग से सुरक्षा

9. धारा 257 की सीमाएं 10. निष्कर्ष

भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 257, जो समन मामलों में शिकायतकर्ता को विवेक का अधिकार देती है। यह प्रावधान शिकायतकर्ता को अंतिम निर्णय दिए जाने से पहले अपनी शिकायत वापस लेने की अनुमति देता है। यह धारा इस मूलभूत कानूनी सिद्धांत को दर्शाती है कि शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत वापस लेने का अधिकार हो, लेकिन साथ ही न्यायिक समीक्षा भी सुनिश्चित हो ताकि न्याय प्रभावित न हो।

समन मामले आमतौर पर मानहानि, साधारण मारपीट या छोटे-मोटे चोरी जैसे हल्के अपराधों से संबंधित होते हैं, जिनकी सजा दो साल तक की कैद या जुर्माना होती है। CrPC में अपराधों को उनकी गंभीरता के आधार पर दो भागों में बांटा गया है — समन मामले और वारंट मामले। समन मामलों में प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल होती है, और इन्हीं मामलों में धारा 257 लागू होती है, जिससे शिकायतकर्ता यदि कार्यवाही जारी नहीं रखना चाहता तो वह कानूनी रूप से वापस ले सकता है।

CrPC की धारा 257 का कानूनी प्रावधान

धारा 257: शिकायत की वापसी -

यदि किसी समन मामले में अंतिम आदेश पारित होने से पहले शिकायतकर्ता यह सिद्ध कर दे कि शिकायत वापस लेने के लिए उसके पास पर्याप्त कारण हैं, तो मजिस्ट्रेट उसे शिकायत वापस लेने की अनुमति दे सकता है। ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट संबंधित आरोपी को दोषमुक्त घोषित करेगा।

समन मामला क्या होता है?

धारा 257 को समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि समन मामला क्या होता है। समन मामले वे होते हैं जिनमें अपराध की प्रकृति गंभीर नहीं होती और सजा अधिकतम दो साल की कैद या जुर्माने तक सीमित होती है। इनमें शामिल अपराध हैं:

  • छोटी चोरी
  • मानहानि
  • साधारण मारपीट
  • अनुबंध का उल्लंघन

CrPC के अनुसार, आपराधिक मामलों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा गया है — समन मामले और वारंट मामले। समन मामलों में अपेक्षाकृत सरल और तेज़ प्रक्रिया होती है।

धारा 257 का उद्देश्य

समन मामलों में शिकायत वापस लेने की विधिक प्रक्रिया प्रदान करना ही धारा 257 का मुख्य उद्देश्य है। इसके माध्यम से कई आवश्यक कार्य सिद्ध होते हैं:

1. शिकायतकर्ता के लिए लचीलापन

यदि कोई शिकायतकर्ता यह निर्णय लेता है कि वह मुकदमा आगे नहीं बढ़ाना चाहता, तो उसे यह कानूनी अधिकार प्राप्त है कि वह शिकायत वापस ले सके।

2. समझौते को प्रोत्साहन

इस प्रावधान से पक्षकार आपसी समझौते से विवाद सुलझा सकते हैं, जिससे लंबे मुकदमेबाजी की आवश्यकता नहीं रहती — विशेष रूप से हल्के मामलों में।

3. न्यायिक संसाधनों का कुशल उपयोग

यह धारा अदालतों का समय और संसाधन बचाती है, जिससे बेवजह के लंबित मामलों की संख्या कम होती है।

4. शिकायतकर्ता की सुरक्षा

यह प्रावधान शिकायतकर्ता को यह आत्मविश्वास देता है कि वह बिना डर के अपनी शिकायत वापस ले सकता है और उसे कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं झेलनी पड़ेगी।

धारा 257 के तहत शिकायत वापसी की प्रक्रिया

शिकायत वापस लेने की प्रक्रिया CrPC की धारा 257 के अंतर्गत कुछ चरणों में की जाती है:

चरण 1: वापसी के लिए अनुरोध

शिकायतकर्ता को मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत वापस लेने के लिए औपचारिक अनुरोध करना होता है। यह अनुरोध अंतिम निर्णय से पहले कभी भी किया जा सकता है, मौखिक या लिखित रूप में।

चरण 2: मजिस्ट्रेट द्वारा विचार

मजिस्ट्रेट निम्नलिखित बातों पर विचार करता है:

  • अनुरोध की सच्चाई: क्या शिकायतकर्ता का फैसला स्वेच्छा से लिया गया है या किसी दबाव में?
  • पर्याप्त कारण: क्या शिकायतकर्ता के पास शिकायत वापस लेने के लिए वैध कारण हैं — जैसे समझौता, भूलवश शिकायत दर्ज करना आदि।
  • शिकायतकर्ता की उपस्थिति: आमतौर पर उसकी उपस्थिति आवश्यक होती है, परंतु विशेष परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट उपस्थिति के बिना भी अनुमति दे सकता है।

चरण 3: मजिस्ट्रेट की स्वीकृति

यदि मजिस्ट्रेट शिकायत वापसी के पक्ष में संतुष्ट हो जाता है, तो वह अनुमति दे देता है और आरोपी को दोषमुक्त कर देता है।

चरण 4: दस्तावेजीकरण

शिकायत की वापसी और आरोपी की बरी होने की जानकारी अदालत के रिकॉर्ड में दर्ज की जाती है। यह दस्तावेज भविष्य के लिए एक विधिक साक्ष्य के रूप में कार्य करता है।

शिकायतकर्ताओं के लिए प्रभाव

धारा 257 का सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव शिकायतकर्ताओं पर पड़ता है, जिन्हें अपनी शिकायत वापस लेने का विकल्प दिया जाता है। इसके कई महत्वपूर्ण पहलू हैं:

स्वतंत्रता और अधिकार

शिकायतकर्ता अपनी परिस्थितियों और सोच के अनुसार यह तय कर सकते हैं कि वे कार्यवाही जारी रखना चाहते हैं या नहीं। यह अधिकार उन्हें कानूनी प्रक्रिया में भागीदारी को नियंत्रित करने की स्वतंत्रता देता है।

यदि शिकायतकर्ता महसूस करता है कि अब मामला उनके हित में नहीं है — जैसे निजी परिस्थितियों में बदलाव, आरोपी से सुलह, या गलतफहमी के कारण शिकायत की गई थी — तो वे केस वापस ले सकते हैं।

अनावश्यक बोझ से बचाव

न्यायिक प्रक्रिया मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से भारी हो सकती है। धारा 257 शिकायतकर्ताओं को एक वैकल्पिक रास्ता देती है ताकि वे लंबी कानूनी लड़ाई, खर्च और तनाव से बच सकें।

खासकर जब शिकायत जल्दबाजी में या भावनाओं में आकर की गई हो, तब यह प्रावधान पीछे हटने का सुरक्षित अवसर देता है।

दबाव या धमकी का जोखिम

जहां यह प्रावधान शिकायतकर्ताओं को सशक्त बनाता है, वहीं इसका दुरुपयोग भी हो सकता है। जैसे कि किसी प्रभावशाली आरोपी द्वारा दबाव डालकर शिकायत वापस करवाना — खासकर घरेलू हिंसा या कार्यस्थल उत्पीड़न के मामलों में।

ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है कि वे सुनिश्चित करें कि वापसी स्वेच्छा से की जा रही है, न कि किसी दबाव में।

आरोपी के लिए प्रभाव

धारा 257 आरोपियों को भी राहत और समाधान का अवसर देती है:

लंबी मुकदमेबाज़ी से राहत

यदि शिकायतकर्ता केस वापस लेता है और मजिस्ट्रेट मंजूरी देता है, तो आरोपी अनावश्यक कानूनी प्रक्रिया से बच जाता है। इससे मानसिक और आर्थिक राहत मिलती है।

खासतौर पर छोटे-मोटे मामलों में या समझौता होने पर, आरोपी केस के कलंक से बाहर निकल सकता है।

कानूनी उत्पीड़न से सुरक्षा

धारा 257 का एक और फायदा यह है कि यह झूठी या बेबुनियाद शिकायतों से आरोपियों की रक्षा करता है। जब शिकायतकर्ता केस को आगे नहीं ले जाना चाहता, तो मजिस्ट्रेट की अनुमति से उसे वापस लिया जा सकता है और आरोपी को बरी किया जा सकता है।

शिकायत वापसी के उदाहरण

उदाहरण 1: आपसी समझौता

स्थिति: दो पड़ोसियों के बीच मतभेद के चलते एक ने दूसरे पर मानहानि का केस किया। बाद में उन्होंने सुलह कर ली और आपसी सम्मान बनाए रखने का वादा किया।

प्रक्रिया: शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट से शिकायत वापस लेने की अनुमति मांगता है। मजिस्ट्रेट अनुमति देकर आरोपी को बरी कर देते हैं।

उदाहरण 2: सोच में बदलाव

स्थिति: एक व्यक्ति ने एक कंपनी पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया, लेकिन बाद में समझ गया कि मामला गलतफहमी पर आधारित था। वह कंपनी से सीधे निपटना चाहता है।

प्रक्रिया: वह मजिस्ट्रेट से शिकायत वापस लेने की अर्जी देता है, जिसे मजिस्ट्रेट स्वीकृति देकर आरोपी को बरी कर देते हैं।

उदाहरण 3: शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति

स्थिति: शिकायतकर्ता बीमार है और कोर्ट में हाजिर नहीं हो सकता, लेकिन वह शिकायत वापस लेना चाहता है।

प्रक्रिया: वह लिखित रूप से कारण बताते हुए अर्जी देता है। मजिस्ट्रेट उसकी अनुपस्थिति को स्वीकार कर केस समाप्त कर देते हैं।

धारा 257 के दुरुपयोग से सुरक्षा

दबाव से सुरक्षा

धारा 257 के तहत शिकायतकर्ता पर दबाव डालने का खतरा रहता है — विशेष रूप से जब आरोपी प्रभावशाली होता है। मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी होती है यह सुनिश्चित करना कि शिकायत स्वेच्छा से वापस ली जा रही है। वे व्यक्तिगत पूछताछ कर सकते हैं और मामले की पृष्ठभूमि पर विचार कर सकते हैं।

कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग से सुरक्षा

कुछ मामलों में शिकायतकर्ता व्यक्तिगत लाभ के लिए झूठी शिकायत वापस ले सकते हैं — जैसे समझौता राशि लेना। मजिस्ट्रेट को ऐसे मामलों में विशेष सतर्कता बरतनी होती है। वे वापसी के समय और संदर्भ की जांच करते हैं ताकि प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।

धारा 257 की सीमाएं

  1. निर्णय में विषयता: मजिस्ट्रेट की स्वतंत्र सोच के कारण अलग-अलग मामलों में अलग निर्णय लिए जा सकते हैं, जिससे असंगतियां उत्पन्न हो सकती हैं।
  2. सीमित दायरा: यह प्रावधान केवल समन मामलों पर लागू होता है, गंभीर अपराधों में इसकी अनुमति नहीं है।
  3. पीड़ित के अधिकारों पर प्रभाव: जब पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाता क्योंकि उसने दबाव में शिकायत वापस ले ली, तो यह न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करता है।

निष्कर्ष

CrPC की धारा 257 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो समन मामलों में शिकायतकर्ताओं को शिकायत वापस लेने का अधिकार देता है। यह प्रक्रिया को लचीला बनाता है, आपसी समझौते को बढ़ावा देता है और अदालतों पर बोझ कम करता है। हालांकि, दुरुपयोग की संभावना को रोकने के लिए मजिस्ट्रेट की सतर्क भूमिका आवश्यक है। यदि सही ढंग से लागू किया जाए, तो यह धारा न्याय प्रणाली की कार्यकुशलता को बढ़ावा देती है और सभी पक्षों के अधिकारों की रक्षा करती है।

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