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कानून की नज़र में नाबालिग की किसी भी तरह से सहमति का कोई महत्व नहीं है
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने कहा कि नाबालिग की सहमति, चाहे किसी भी तरीके से ली गई हो, कानून की नज़र में उसका कोई महत्व नहीं है। बेंच ने नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति की ज़मानत याचिका खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
आरोपी-अपीलकर्ता पीर मोहम्मद को नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोप में आईपीसी, पोक्सो एक्ट और एससी/एसटी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा उसकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
आरोपी-अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता मीर नागम अली ने तर्क दिया कि आरोपी को और कारावास की सज़ा देना अनावश्यक है क्योंकि जांच पूरी हो चुकी है और आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है। उन्होंने आगे कहा कि दोनों पक्षों के बीच प्रेम संबंध थे और पीड़िता स्वेच्छा से उसके साथ भाग गई थी और उत्तर प्रदेश में उसके घर पर लगभग 45 दिन बिताए थे। और, इसलिए उनके बीच यौन संबंध सहमति से बने थे।
चार्जशीट की जांच करने के बाद जस्टिस वीएम देशपांडे और अनुजा प्रभुदेसाई की बेंच ने निष्कर्ष निकाला कि पीड़िता का अपीलकर्ता के प्रति कोई लगाव नहीं था। स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र से यह भी स्पष्ट है कि पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम थी।
इसके अलावा, उत्तरजीवी और अन्य अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने आरोपी को जमानत पर रिहा नहीं किया।
लेखक: पपीहा घोषाल