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दिल्ली हाईकोर्ट ने न्यायिक अधिकारी को हिरासत केंद्रों की रहने की स्थिति की जांच करने का आदेश दिया

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13 नवंबर

दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जेआर मिधा और न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की पीठ ने एक न्यायिक अधिकारी को एक हिरासत केंद्र का दौरा करने और वहां की कथित 'दयनीय' रहने की स्थिति की जांच करने का आदेश दिया है।

यह न्यायालय आदेश एक महिला द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया, जो अपने पति को रिहा करवाने की कोशिश कर रही थी, जिसके बारे में संदेह है कि वह पाकिस्तानी नागरिक है, उसे दिल्ली के सेवा सदन निर्वासन केंद्र लामपुर गांव से रिहा करवाया गया है। याचिकाकर्ता के वकील ने हिरासत केंद्र की दयनीय स्थितियों की ओर ध्यान दिलाया, जहाँ बंदियों को चिकित्सा सुविधाओं और स्वस्थ भोजन सहित उनके बुनियादी मानवाधिकार भी प्रदान नहीं किए जाते हैं। आरोपी व्यक्ति को 13 दिसंबर, 2012 को गिरफ्तार किया गया था और उसे कई वर्षों तक मुकदमे का सामना करना पड़ा। 10 अक्टूबर, 2016 को एक ट्रायल कोर्ट ने उसे आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम और अन्य के तहत हिरासत में रखने और 9 साल जेल की सजा सुनाई।

अदालत ने कहा, "यदि नामित न्यायिक अधिकारी को हिरासत केंद्र में कोई विसंगतियां मिलती हैं, तो हिरासत केंद्र के अधिकारियों द्वारा निर्दिष्ट अवधि के भीतर दोषों को दूर करने के लिए तत्काल कार्रवाई की जाएगी, और न्यायिक अधिकारी यह जांचने के लिए फिर से हिरासत केंद्र का दौरा करेंगे कि क्या दोष दूर हो गए हैं या नहीं। रिपोर्ट को सुनवाई की अगली तारीख से पहले एक सीलबंद लिफाफे में अदालत को प्रस्तुत किया जाना है।"

लेखक: श्वेता सिंह