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मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 5(4) को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका

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सुप्रीम कोर्ट में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 5(4) को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया है कि दत्तक माताएं मातृत्व अवकाश के लिए तभी पात्र होंगी जब वे 3 महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेंगी। कोई व्यक्ति 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश तभी ले सकता है जब वह तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद ले।

याचिकाकर्ता हंसानंदिनी नंदूरी ने कहा कि इस तरह के प्रतिबंधात्मक प्रावधान के कारण माता-पिता बड़े बच्चों के बजाय नवजात बच्चों को गोद लेना पसंद करेंगे। धारा 5(4) न केवल जैविक माताओं और दत्तक माताओं के बीच भेदभाव करती है, बल्कि नवजात बच्चे और बड़े बच्चे के बीच भी भेदभाव करती है।

याचिका में आगे कहा गया है कि ये प्रावधान किशोर न्याय अधिनियम की भावना के भी विपरीत हैं क्योंकि इसमें जेजे अधिनियम के तहत गोद लेने की प्रक्रिया को ध्यान में नहीं रखा गया है। इसके अलावा, गोद लेने के नियमों के अनुसार, किसी बच्चे को “गोद लेने के लिए कानूनी रूप से स्वतंत्र” घोषित करने के लिए कम से कम दो महीने की अवधि की आवश्यकता होती है।

याचिका में दत्तक माताओं को प्रदान की जाने वाली मातृत्व अवकाश की अवधि (12 सप्ताह) और जैविक माताओं को प्रदान की जाने वाली मातृत्व अवकाश की अवधि (26 सप्ताह) पर भी आपत्ति जताई गई।


लेखक: पपीहा घोषाल

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