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शीर्ष अदालत ने सीआरपीसी की धारा 319 के दायरे और दायरे को समझाया

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न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के दायरे को स्पष्ट किया, जो अदालत को मंजीत सिंह बनाम हरियाणा राज्य के मामले में "अपराध के दोषी प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के अलावा अन्य व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही करने" का अधिकार देती है। सर्वोच्च न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 319 के तहत हत्या के एक मामले में एक अतिरिक्त आरोपी को बुलाने की याचिका पर यह फैसला सुनाया।

सत्र न्यायाधीश और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने धारा 319 के तहत आवेदन को खारिज कर दिया तथा दोषी प्रतीत होने वाले व्यक्ति को बुलाने से इनकार कर दिया, जिसके कारण वर्तमान अपील प्रस्तुत की गई।

सर्वोच्च न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 319 के दायरे को समझने के लिए विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया और निम्नलिखित को संक्षेप में प्रस्तुत किया:

  1. न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि वह यह आश्वासन दे कि आपराधिक न्याय प्रशासन समुचित रूप से कार्य करेगा;

  2. इस प्रावधान को विधायिका द्वारा उचित रूप से संहिताबद्ध किया गया है, जो यह दर्शाता है कि अदालत अंततः सत्य का पता कैसे लगा सकती है और किसी निर्दोष को सजा नहीं मिल सकती है;

  3. यह प्रावधान अदालत को उस व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देता है जो पहले मामले में आरोपी नहीं है;

  4. इसका प्रयोग मुकदमे की कार्यवाही के बाद, आरोप पत्र दाखिल होने के बाद तथा अंतिम निर्णय पारित होने से पहले किसी भी चरण में किया जा सकता है। धारा 207/208 सीआरपीसी के चरण को छोड़कर;

  5. धारा 319 में साक्ष्य का अर्थ है न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य - न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कथन या दस्तावेज;

  6. एक बार जब मजिस्ट्रेट/अदालत मुख्य परीक्षा में प्रस्तुत साक्ष्य से आश्वस्त हो जाती है, तो वह सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्ति का प्रयोग कर सकती है

  7. न्यायालय मुख्य परीक्षा के पूर्ण होने के चरण में भी अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है तथा उसे प्रति-परीक्षा द्वारा साक्ष्य के परीक्षण तक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है।

उपरोक्त सिद्धांत को लागू करते हुए, न्यायालय ने माना कि सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय ने आवेदन को खारिज करने में गलती की है, इसलिए सत्र न्यायालय को व्यक्ति को सम्मन करने का निर्देश दिया।


लेखक: पपीहा घोषाल