नंगे कृत्य
वन संरक्षण अधिनियम, 1980
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वन संरक्षण अधिनियम, 1980
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अधिनियम संख्या 69, 1980)
अंतर्वस्तु
धारा | विवरण |
1 | |
2 | |
3 | |
3 ए | |
3 बी | |
4 | |
5 |
प्रस्तावना
(1980 की संख्या 69)
वनों के संरक्षण तथा उससे संबंधित या उसके सहायक या आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम
भारत गणराज्य के इकतीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियम बनाया जाएगा:
धारा 1- संक्षिप्त शीर्षक, विस्तार और प्रारंभ
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 है।
(2) इसका विस्तार जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह 25 अक्टूबर, 1980 को प्रवृत्त हुआ समझा जाएगा।
धारा 2 - वनों के संरक्षण या वन भूमि के गैर-वनीय प्रयोजनों के लिए उपयोग पर प्रतिबंध।
किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, कोई राज्य सरकार या अन्य प्राधिकारी, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना, निम्नलिखित निर्देश देने वाला कोई आदेश नहीं देगा -
(i) कोई आरक्षित वन (उस राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में "आरक्षित वन" पद के अर्थ में) या उसका कोई भाग, आरक्षित नहीं रह जाएगा।
(ii) किसी वन भूमि या उसके किसी भाग का उपयोग किसी गैर-वनीय प्रयोजन के लिए नहीं किया जा सकेगा।
(iii) कि कोई वन भूमि या उसका कोई भाग पट्टे पर या अन्यथा किसी निजी व्यक्ति या किसी प्राधिकरण, निगम, एजेंसी या किसी अन्य संगठन को सौंपा जा सकेगा जो सरकार के स्वामित्व, प्रबंधन या नियंत्रण में न हो;
(iv) किसी वन भूमि या उसके किसी भाग को पुनः वनरोपण के लिए उपयोग करने के प्रयोजनार्थ उस भूमि या भाग में प्राकृतिक रूप से उगे वृक्षों को हटाया जा सकेगा।
स्पष्टीकरण: इस धारा के प्रयोजन के लिए "गैर-वनीय प्रयोजन" का अर्थ किसी वन भूमि या उसके किसी भाग को तोड़ना या साफ करना है -
(क) चाय, कॉफी, मसाले, रबर, ताड़, तेल उत्पादक पौधे, बागवानी फसलें या औषधीय पौधों की खेती;
(ख) पुनः वनरोपण के अलावा कोई अन्य उद्देश्य, किन्तु इसमें वनों और वन्य जीवन के संरक्षण, विकास और प्रबंधन से संबंधित या सहायक कोई कार्य शामिल नहीं है, अर्थात चौकियां, अग्नि रेखाएँ, वायरलेस संचार और बाड़, पुल और पुलिया, बाँध, जल कुंड, खाई चिह्न, सीमा चिह्न, पाइपलाइन या अन्य ऐसे उद्देश्यों का निर्माण।
धारा 3 - सलाहकार समिति का गठन
केन्द्रीय सरकार, ऐसे व्यक्तियों की एक समिति गठित कर सकेगी, जिन्हें वह उचित समझे, तथा जो उस सरकार को निम्नलिखित के संबंध में सलाह देगी -
(i) धारा 2 के अंतर्गत अनुमोदन प्रदान करना; और
(ii) वन संरक्षण से संबंधित कोई अन्य विषय जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे भेजा जाए।
धारा 3ए - अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दंड
जो कोई धारा 2 के किसी उपबंध का उल्लंघन करेगा या उल्लंघन के लिए उकसाएगा, उसे साधारण कारावास से, जिसकी अवधि पन्द्रह दिन तक हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा।
धारा 3बी - प्राधिकारियों और सरकारी विभागों द्वारा अपराध।
(1) जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया है, -
(क) सरकार के किसी विभाग द्वारा, विभागाध्यक्ष द्वारा; या
(ख) किसी प्राधिकारी द्वारा, प्रत्येक व्यक्ति, जो अपराध किए जाने के समय, उस प्राधिकारी के कारबार के संचालन के लिए प्राधिकारी का प्रत्यक्ष रूप से भारसाधक था और उसके प्रति उत्तरदायी था, साथ ही वह प्राधिकारी भी, उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगा:
परंतु इस उपधारा में अंतर्विष्ट कोई बात विभागाध्यक्ष या खंड (ख) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति को दंड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध को रोकने के लिए सभी सम्यक् तत्परता बरती थी।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध सरकार के किसी विभाग या उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट किसी प्राधिकरण द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि अपराध विभागाध्यक्ष से भिन्न किसी अधिकारी या किसी प्राधिकरण की स्थिति में उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट व्यक्तियों से भिन्न किसी व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत से किया गया है या उसकी ओर से किसी उपेक्षा के कारण हुआ है, वहां ऐसा अधिकारी या व्यक्ति भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार उसके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकेगी और उसे दंडित किया जा सकेगा।
धारा 4 - नियम बनाने की शक्ति
(1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी।
(2) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने पर सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा। तथापि, नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की वैधता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
धारा 5 - निरसन और बख्शा
(1) वन (संरक्षण) अध्यादेश, 1980 निरसित किया जाता है।
(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी, उक्त अध्यादेश के उपबंधों के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई इस अधिनियम के समतुल्य उपबंधों के अधीन की गई समझी जाएगी।
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