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भारत में कोर्ट मैरिज कैसे करें? पूरी प्रक्रिया और जरूरी जानकारी

3.1. भारत में कोर्ट मैरिज से जुड़ा नया नियम क्या है?
4. कोर्ट मैरिज के लिए पात्रता मानदंड4.5. भारत में कोर्ट मैरिज के लिए जरूरी दस्तावेज़
4.9. वैवाहिक स्थिति से संबंधित दस्तावेज़
4.11. अनापत्ति प्रमाण पत्र (विदेशी नागरिकों के लिए)
4.12. चरण 1: विवाह का इरादा दर्शाने वाला नोटिस
4.14. चरण 3: जोड़े और गवाहों द्वारा घोषणा
4.15. चरण 4: विवाह की विधिवत संपन्नता
4.16. चरण 5: विवाह प्रमाणपत्र जारी करना
5. कोर्ट मैरिज शुल्क और समय अवधि 6. भारत में कोर्ट मैरिज के लिए कहां आवेदन करें?6.1. ऑनलाइन आवेदन पोर्टल (राज्यवार)
7. कोर्ट मैरिज प्रक्रिया के दौरान आम गलतियां 8. कोर्ट मैरिज के लाभ8.2. सरल और धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया
9. कोर्ट मैरिज और रजिस्टर्ड मैरिज में क्या अंतर है? 10. कोर्ट मैरिज से जुड़े कानूनी पहलू और चुनौतियां10.1. माता-पिता का विरोध और सामाजिक दबाव
10.2. धमकियों का सामना कर रहे जोड़ों के लिए कानूनी सुरक्षा
11. भारत में कोर्ट मैरिज से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)11.1. Q1. क्या बिना मुहूर्त के कोर्ट मैरिज की जा सकती है?
11.2. Q2. क्या माता-पिता के बिना कोर्ट मैरिज हो सकती है?
11.3. Q3. क्या कोर्ट मैरिज एक दिन में हो सकती है?
11.4. Q4. क्या कोर्ट मैरिज के बाद साथ रहना जरूरी है?
11.5. Q5. क्या बिना समारोह के विवाह हो सकता है?
11.6. Q6. कोर्ट मैरिज में कितना समय लगता है?
11.7. Q7. क्या ऑनलाइन कोर्ट मैरिज संभव है?
11.8. Q8. क्या एनआरआई जोड़े कोर्ट मैरिज कर सकते हैं?
11.9. Q9. क्या बिना गवाह के कोर्ट मैरिज हो सकती है?
11.10. Q10. क्या कोर्ट मैरिज घर पर हो सकती है?
12. निष्कर्षशादी जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, और भारत में जोड़े पारंपरिक रीति-रिवाजों या कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त कोर्ट मैरिज के बीच चुन सकते हैं। कोर्ट मैरिज एक सरल, धर्मनिरपेक्ष और कानूनी रूप से वैध तरीका है जिसमें बिना किसी धार्मिक अनुष्ठान के विवाह संपन्न किया जा सकता है। यह प्रक्रिया विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत संचालित होती है और यह अंतरधार्मिक, अंतरजातीय और अंतरराष्ट्रीय जोड़ों के लिए आदर्श है, जिससे दोनों जीवनसाथियों को बराबर अधिकार और सुरक्षा मिलती है।
इस विस्तृत गाइड में हम आपको भारत में कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया के बारे में बताएंगे, जिसमें शामिल हैं:
- पात्रता की शर्तें
- कानूनी ढांचा
- जरूरी दस्तावेज़
- चरण-दर-चरण प्रक्रिया
- समय-सीमा, शुल्क और ऑनलाइन आवेदन पोर्टल
अगर आप बिना झंझट की कानूनी शादी चाहते हैं या पारंपरिक रस्मों से बचना चाहते हैं, तो यह लेख भारत में कोर्ट मैरिज की पूरी प्रक्रिया हिंदी में समझाता है।
कोर्ट मैरिज क्या है?
कोर्ट मैरिज दो व्यक्तियों के बीच एक कानूनी मान्यता प्राप्त विवाह होता है, जिसे विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत नागरिक तरीके से संपन्न किया जाता है। पारंपरिक या धार्मिक समारोहों के विपरीत, इसमें कोई धार्मिक रस्में नहीं होतीं। यह विवाह अधिकारी और 2 से 3 गवाहों की उपस्थिति में संपन्न होता है, जिससे यह प्रक्रिया पारदर्शी और औपचारिक बनती है।
भारत में कोर्ट मैरिज विशेष विवाह अधिनियम, 1954 द्वारा नियंत्रित होती है, जो एक केंद्रीय कानून है और यह विभिन्न धर्मों, जातियों या राष्ट्रीयताओं के लोगों को बिना धर्म परिवर्तन या पारंपरिक रस्मों के कानूनी रूप से विवाह करने की अनुमति देता है। यह अधिनियम विवाह के लिए एक समान कानूनी ढांचा प्रदान करता है और इसकी वैधता भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होती है।
भारत में कोर्ट मैरिज कौन कर सकता है?
कोर्ट मैरिज प्रक्रिया भारत के सभी नागरिकों के लिए खुली है—चाहे उनका धर्म, जाति या राष्ट्रीयता कुछ भी हो। ये लोग आवेदन कर सकते हैं:
- अंतरधार्मिक जोड़े: यदि दोनों व्यक्ति भारतीय नागरिक हैं लेकिन अलग-अलग धर्मों से हैं और धर्म परिवर्तन के बिना शादी करना चाहते हैं, तो कोर्ट मैरिज सबसे अच्छा विकल्प है।
- भारतीय और विदेशी नागरिकों के जोड़े: यदि कोई भारतीय नागरिक किसी विदेशी से विवाह करना चाहता है, तो कोर्ट मैरिज उस विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करती है।
- एक ही धर्म के धर्मनिरपेक्ष जोड़े: जोड़े जो एक ही धर्म से हैं लेकिन धार्मिक रस्मों से बचना चाहते हैं, वे भी कानूनी रूप से कोर्ट मैरिज का विकल्प चुन सकते हैं।
भारत में कोर्ट मैरिज से संबंधित कानूनी ढांचा
कानून / अधिनियम | लागू होने की सीमा | मुख्य विशेषताएं |
---|---|---|
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 | सभी भारतीय नागरिकों पर लागू, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो | अलग-अलग धर्मों के लोगों को बिना धार्मिक रस्मों के कोर्ट मैरिज की अनुमति देता है। विवाह अधिकारी को 30 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है। अनिवार्य होता है। |
हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए | हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न विवाह को मान्यता देता है। कोर्ट मैरिज वैध है यदि इसका पंजीकरण इस अधिनियम के अंतर्गत किया गया हो। | |
मुस्लिम पर्सनल लॉ | मुस्लिम जोड़ों पर लागू | निकाह को एक वैध कानूनी विवाह माना जाता है। के समान कानूनी दर्जा प्राप्त होता है। |
अन्य पर्सनल लॉ | ईसाई और पारसी समुदाय के लिए | भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 : जब किसी एक पक्ष का धर्म ईसाई हो। पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936: जब दोनों पक्ष पारसी हों। |
भारत में कोर्ट मैरिज से जुड़ा नया नियम क्या है?
भारत में कोर्ट मैरिज के लिए कोई पूरी तरह से "नया" नियम लागू नहीं हुआ है। मुख्य कानूनी ढांचा अभी भी विशेष विवाह अधिनियम, 1954 पर आधारित है। हालांकि, अलग-अलग राज्यों में प्रक्रिया में कुछ बदलाव हो सकते हैं। हाल के बदलाव या चर्चाएं आमतौर पर प्रक्रिया को सरल बनाने, दक्षता बढ़ाने और अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाहों से जुड़े सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने पर केंद्रित होती हैं, ना कि अधिनियम में बड़े बदलावों पर।
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कोर्ट मैरिज के लिए पात्रता मानदंड
जब दो लोग शादी करने और जीवन साथ बिताने का निर्णय लेते हैं, तो उन्हें कुछ कानूनी शर्तों को पूरा करना होता है। ये शर्तें पारंपरिक और कोर्ट दोनों तरह की शादियों पर लागू होती हैं ताकि शादी की कानूनी वैधता बनी रहे। कोर्ट मैरिज के लिए पात्रता शर्तें विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 4 में स्पष्ट रूप से दी गई हैं।
चलिए जानते हैं कोर्ट मैरिज के कानूनी मानदंड -
आयु की आवश्यकता
- लड़की की उम्र कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए।
- लड़के की उम्र कम से कम 21 वर्ष होनी चाहिए।
वैवाहिक स्थिति
- शादी करते समय दोनों पक्षों को तलाकशुदा, अविवाहित या विधवा/विधुर होना चाहिए।
- अगर किसी भी पक्ष की पहले शादी हो चुकी हो, तो उन्हें तलाक का डिक्री या मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा।
मानसिक और शारीरिक स्थिति
- शादी के समय दोनों पक्षों का मानसिक रूप से सक्षम होना आवश्यक है। उन्हें बिना दबाव के शादी के लिए सहमति देनी चाहिए।
- किसी भी पक्ष को कोई गंभीर मानसिक बीमारी नहीं होनी चाहिए जिससे वे विवाह करने में अक्षम हों। दोनों को विवाह के बाद की जिम्मेदारियों की समझ होनी चाहिए।
निषिद्ध संबंध
दूल्हा और दुल्हन के बीच रक्त संबंध नहीं होना चाहिए। यह विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की अनुसूची I के अनुसार है, जब तक कि दोनों पक्षों की परंपराएं ऐसे विवाह की अनुमति न देती हों।
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भारत में कोर्ट मैरिज के लिए जरूरी दस्तावेज़
अगर कोई जोड़ा कोर्ट मैरिज करने का निर्णय लेता है, तो उन्हें निम्नलिखित दस्तावेज़ जमा करने होते हैं:
पहचान और पता प्रमाण
इनमें से कोई एक दस्तावेज़ आवश्यक है:
- आधार कार्ड
- पासपोर्ट
- वोटर आईडी
- ड्राइविंग लाइसेंस
उम्र का प्रमाण
इनमें से कोई एक दस्तावेज़ आवश्यक है:
- जन्म प्रमाण पत्र
- 10वीं / 12वीं की मार्कशीट
- पासपोर्ट
फोटो
हाल की पासपोर्ट साइज फोटो। कम से कम दो या अधिक प्रतियां जमा करनी होती हैं।
वैवाहिक स्थिति से संबंधित दस्तावेज़
- अगर कोई पक्ष तलाकशुदा है, तो तलाक डिक्री
- अगर कोई पक्ष विधवा/विधुर है, तो मृतक जीवनसाथी का मृत्यु प्रमाण पत्र
गवाहों का पता प्रमाण
तीन गवाह जरूरी होते हैं। सभी गवाहों को अपना पता प्रमाण साथ लाना होता है।
अनापत्ति प्रमाण पत्र (विदेशी नागरिकों के लिए)
अगर किसी पक्ष की नागरिकता विदेशी है, तो उसे अपने देश के दूतावास से अनापत्ति प्रमाण पत्र देना होगा। साथ ही, उसे अपनी वैवाहिक स्थिति का प्रमाण भी देना होगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वह विशेष विवाह अधिनियम, 1957 के तहत विवाह के योग्य है।
भारत में कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए, सभी जरूरी दस्तावेज पहले से तैयार रखें, कानूनी प्रक्रिया का पालन करें और यदि ज़रूरत हो तो किसी प्रमाणित वकील से सलाह लें।
भारत में कोर्ट मैरिज की चरणबद्ध प्रक्रिया
अब जब आप पात्रता शर्तों से परिचित हो चुके हैं, आइए भारत में कोर्ट मैरिज की पूरी प्रक्रिया को स्टेप-बाय-स्टेप समझते हैं।
चरण 1: विवाह का इरादा दर्शाने वाला नोटिस
- दूल्हा-दुल्हन को विवाह का इरादा दर्शाने वाला नोटिस अपने-अपने जिले के विवाह रजिस्ट्रार को देना होता है। यह उनके शादी करने के इरादे को दर्शाता है।
- यह नोटिस विवाह की चुनी गई तारीख से 30 दिन पहले जमा करना होता है ताकि कानूनी प्रक्रिया सही ढंग से पूरी हो सके।
- यह नोटिस उस जिले में जमा करना होता है जहां दूल्हा या दुल्हन में से कोई कम से कम 30 दिनों से रह रहा हो।
चरण 2: नोटिस का प्रकाशन
- एक बार विवाह अधिकारी नोटिस प्राप्त कर लेता है, तो उसे इसे सार्वजनिक स्थान पर प्रदर्शित करना होता है ताकि आम लोग इसे देख सकें।
- अगर कोई व्यक्ति विवाह का विरोध करना चाहता है, तो उसके पास 30 दिन का समय होता है। लेकिन आपत्ति का कानूनी आधार होना चाहिए, न कि केवल व्यक्तिगत राय।
- यदि कोई आपत्ति नहीं आती, तो जोड़े द्वारा तय तारीख पर विवाह संपन्न हो सकता है।
- अगर कोई आपत्ति आती है, तो विवाह अधिकारी का कर्तव्य होता है कि वह उस आपत्ति की जांच करे और 30 दिनों के भीतर उचित निर्णय ले ताकि निर्णय प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहे।
चरण 3: जोड़े और गवाहों द्वारा घोषणा
- 30 दिन की प्रतीक्षा अवधि पूरी होने के बाद, दूल्हा-दुल्हन के तीनों गवाहों को विवाह अधिकारी के सामने उपस्थित होना होता है।
- दूल्हा और दुल्हन दोनों एक फॉर्म पर हस्ताक्षर करते हैं जिसमें वे यह घोषणा करते हैं कि वे अपनी मर्जी से, बिना किसी दबाव के विवाह कर रहे हैं।
चरण 4: विवाह की विधिवत संपन्नता
- फॉर्म पर हस्ताक्षर करने और गवाहों की उपस्थिति के बाद विवाह कार्यालय में विवाह विधिवत संपन्न माना जाता है। विवाह अधिकारी इसे कानूनी प्रक्रिया के अनुसार सरल तरीके से पूरा करता है।
- जोड़े को विवाह प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करना होता है। गवाहों को भी उस प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करने होते हैं। यह प्रक्रिया विवाह को आधिकारिक रूप से पूरा करती है।
चरण 5: विवाह प्रमाणपत्र जारी करना
- विवाह के संपन्न और पंजीकरण के बाद, विवाह अधिकारी जोड़े को विवाह प्रमाणपत्र प्रदान करता है। यह प्रमाणपत्र कानूनी रूप से मान्य होता है।
- यह प्रमाणपत्र पति-पत्नी के रिश्ते को स्थापित करने के लिए बहुत जरूरी होता है। इसके अलावा यह प्रमाणपत्र पासपोर्ट बनवाने, वीजा के लिए आवेदन करने, विदेश यात्रा करने, संपत्ति खरीदने आदि जैसे मामलों में भी उपयोगी होता है।
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कोर्ट मैरिज शुल्क और समय अवधि
भारत में कोर्ट मैरिज के लिए शुल्क और समयावधि राज्य, जिले और स्थानीय प्रशासनिक नियमों के अनुसार थोड़ी बहुत अलग हो सकती है। नीचे दिए गए आंकड़े सामान्य मार्गदर्शन के लिए हैं:
शुल्क
- आवेदन शुल्क: आमतौर पर ₹100 से ₹150 के बीच होता है जो विवाह नोटिस जमा करते समय लिया जाता है। (राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के अनुसार बदल सकता है)।
- विवाह पंजीकरण शुल्क: आमतौर पर ₹100 से ₹200 के बीच होता है। (राज्य या स्थानीय कार्यालय के अनुसार अलग-अलग)।
- विवाह समारोह शुल्क: कुछ राज्यों में विवाह रजिस्ट्रार कार्यालय में विवाह संपन्न करने के लिए अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है। (यह वैकल्पिक और राज्य-विशेष होता है)।
- वकील शुल्क: वकील रखना वैकल्पिक है और इसकी फीस स्थान, अनुभव और केस की जटिलता पर निर्भर करती है।
समय अवधि
- नोटिस अवधि: विवाह नोटिस जमा करने के बाद 30 दिन की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि लागू होती है। (यह नियम पूरे भारत में एकसमान है - विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के अंतर्गत)।
- आपत्ति अवधि: यदि कोई व्यक्ति आपत्ति उठाता है, तो विवाह अधिकारी के पास उस पर जांच और निर्णय लेने के लिए 30 दिन का समय होता है। (यह समय प्रशासन की कार्यक्षमता पर निर्भर करता है)।
- प्रमाणपत्र जारी करना: नोटिस अवधि पूरी होने और कोई आपत्ति न आने पर विवाह संपन्न होता है। आमतौर पर प्रमाणपत्र 3–7 कार्यदिवसों के भीतर जारी किया जाता है। (राज्य या कार्यालय के अनुसार समय बदल सकता है)।
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भारत में कोर्ट मैरिज के लिए कहां आवेदन करें?
- भारत में कोर्ट मैरिज को विवाह अधिकारी द्वारा संपन्न और पंजीकृत किया जाता है, जो आमतौर पर विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत नियुक्त उप-पंजीयक (SDM) होते हैं।
- आप उस क्षेत्र के विवाह अधिकारी या उप-पंजीयक के कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं जहां दूल्हा या दुल्हन में से कोई भी निवास करता हो।
- विवाह अधिकारी का कार्यालय आमतौर पर जिला पंजीयक कार्यालय, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (SDM) कार्यालय, या नगर निगम कार्यालय में स्थित होता है।
- विवाह को विवाह अधिकारी के कार्यालय में या जोड़े द्वारा चुने गए नजदीकी किसी अन्य स्थान पर भी संपन्न किया जा सकता है। इसके लिए अतिरिक्त शुल्क लिया जा सकता है।
ऑनलाइन आवेदन पोर्टल (राज्यवार)
अब कई राज्य विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह का इरादा (Notice of Intended Marriage) ऑनलाइन जमा करने की सुविधा देते हैं। नीचे कुछ प्रमुख आधिकारिक पोर्टल दिए गए हैं:
राज्य | ऑनलाइन पोर्टल | लिंक |
---|---|---|
दिल्ली | ई-डिस्ट्रिक्ट दिल्ली पोर्टल | |
महाराष्ट्र | आपले सरकार पोर्टल | |
उत्तर प्रदेश | यूपी ऑनलाइन विवाह पंजीकरण | |
कर्नाटक | कावेरी ऑनलाइन सेवाएं | |
तमिलनाडु | TN सरकारी पंजीकरण विभाग | |
पश्चिम बंगाल | ई-डिस्ट्रिक्ट पश्चिम बंगाल | |
केरल | केरल पंजीकरण विभाग |
कोर्ट मैरिज प्रक्रिया के दौरान आम गलतियां
हालांकि भारत में कोर्ट मैरिज एक सीधी-सादी कानूनी प्रक्रिया है, लेकिन कई बार जोड़ों को छोटी-छोटी गलतियों की वजह से देरी या अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है। यहां कुछ आम गलतियां हैं जिन्हें टालना चाहिए:
- अधूरी दस्तावेजी प्रक्रिया: सभी जरूरी दस्तावेज (पहचान पत्र, पता प्रमाण, उम्र प्रमाण, पासपोर्ट साइज फोटो, शपथ पत्र आदि) पूर्ण और वैध होने चाहिए।
- गवाहों से जुड़ी समस्याएं: कोर्ट मैरिज के लिए कम से कम 3 गवाह जरूरी होते हैं जिनके पास पहचान पत्र होना चाहिए। गवाहों की उपलब्धता पहले से सुनिश्चित करें।
- प्रतीक्षा अवधि को नजरअंदाज करना: विशेष विवाह अधिनियम के तहत 30 दिनों की नोटिस अवधि अनिवार्य है। इसे नज़रअंदाज़ करने से देरी या असमंजस हो सकता है।
कोर्ट मैरिज के लाभ
कोर्ट मैरिज के फायदे इस प्रकार हैं:
कानूनी मान्यता
कोर्ट मैरिज के साथ तुरंत वैधता मिलती है और विवाह प्रमाणपत्र प्राप्त होता है, जो वीजा आवेदन, संपत्ति उत्तराधिकार और बीमा क्लेम जैसे मामलों में कानूनी साक्ष्य के रूप में कार्य करता है।
सरल और धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया
कोर्ट मैरिज में किसी धार्मिक रस्म या अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती, जिससे यह जोड़ों के लिए एक सीधा और समावेशी विकल्प बन जाता है, खासकर अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमियों वाले या गैर-धार्मिक दृष्टिकोण रखने वालों के लिए।
समानता और सुरक्षा
कोर्ट मैरिज विशेष विवाह अधिनियम के तहत की जाती है, जो भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करती है और पति-पत्नी दोनों को समान अधिकार सुनिश्चित करती है, चाहे उनकी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
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कोर्ट मैरिज और रजिस्टर्ड मैरिज में क्या अंतर है?
कोर्ट मैरिज और रजिस्टर्ड मैरिज के बीच मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:
विशेषता | व्यक्तिगत कानूनों के तहत विवाह (जैसे हिंदू विवाह अधिनियम) | कोर्ट/रजिस्टर्ड मैरिज (विशेष विवाह अधिनियम) |
प्रचलित कानून | धर्म-विशिष्ट व्यक्तिगत कानून (जैसे हिंदू विवाह अधिनियम) | विशेष विवाह अधिनियम, 1954 |
विवाह विधि | धार्मिक अनुष्ठानों और रस्मों के माध्यम से | विवाह अधिकारी के समक्ष नागरिक समारोह |
पंजीकरण | वैकल्पिक या बाद में किया जा सकता है | विवाह के समय ही पंजीकरण होता है |
लागू होना | विशेष धार्मिक समुदाय के भीतर | सभी नागरिकों पर लागू, धर्म से परे |
अंतरधार्मिक/अंतरजातीय विवाह | सीमाएं हो सकती हैं या धर्म परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है | ऐसे विवाहों के लिए विशेष रूप से बनाया गया है |
दस्तावेज़ीकरण | विवाह का प्रमाण परंपराओं पर निर्भर हो सकता है | रजिस्ट्रार द्वारा विवाह प्रमाणपत्र जारी किया जाता है |
कानूनी वैधता | व्यक्तिगत कानूनों की सीमा में वैध | एक धर्मनिरपेक्ष, राष्ट्रीय कानून के तहत वैध |
कोर्ट मैरिज से जुड़े कानूनी पहलू और चुनौतियां
कोर्ट मैरिज में कुछ कानूनी और सामाजिक चुनौतियां आती हैं, जिनमें प्रमुख ये हैं:
माता-पिता का विरोध और सामाजिक दबाव
- कई बार अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाहों में माता-पिता सहमत नहीं होते और अपने बच्चों पर विवाह तोड़ने का दबाव डालते हैं।
- यदि परिवार से खतरा बढ़ जाए, तो जोड़ों को पुलिस से सुरक्षा लेनी पड़ती है ताकि वे हिंसा या दबाव से बच सकें।
धमकियों का सामना कर रहे जोड़ों के लिए कानूनी सुरक्षा
अंतरधार्मिक विवाहों में जब परिवार कड़ा विरोध करता है, तो ऐसे मामलों में जोड़ों को कानूनी सहायता की आवश्यकता हो सकती है। ये उपाय लिए जा सकते हैं:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 – जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यह मौलिक अधिकार हर व्यक्ति को प्राप्त है।
- जोड़ों को मजिस्ट्रेट से सुरक्षा आदेश (restraining order) मिल सकता है, या वे पुलिस संरक्षण के लिए आवेदन कर सकते हैं। वे जिला प्रशासन में भी सुरक्षा के लिए अर्जी दे सकते हैं, क्योंकि कानूनन वे किसी से भी शादी कर सकते हैं यदि वे कानूनी रूप से पात्र हों।
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भारत में कोर्ट मैरिज से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
यहाँ विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के अंतर्गत कोर्ट मैरिज प्रक्रिया से जुड़े कुछ सामान्य प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं:
Q1. क्या बिना मुहूर्त के कोर्ट मैरिज की जा सकती है?
हाँ, बिल्कुल। कोर्ट मैरिज एक कानूनी और नागरिक प्रक्रिया है, जो धार्मिक रीति-रिवाजों या मुहूर्त पर निर्भर नहीं करती।
Q2. क्या माता-पिता के बिना कोर्ट मैरिज हो सकती है?
हाँ। माता-पिता की सहमति या उपस्थिति कानूनी रूप से जरूरी नहीं है। अगर दोनों व्यक्ति पात्रता की शर्तें पूरी करते हैं, तो वे स्वतंत्र रूप से कोर्ट मैरिज कर सकते हैं।
Q3. क्या कोर्ट मैरिज एक दिन में हो सकती है?
नहीं। विशेष विवाह अधिनियम के अनुसार विवाह के इरादे की सूचना देने के बाद 30 दिनों की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि होती है। इसलिए एक दिन में प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकती।
Q4. क्या कोर्ट मैरिज के बाद साथ रहना जरूरी है?
नहीं, यह कानूनी रूप से जरूरी नहीं है। साथ रहना व्यक्तिगत पसंद है, कानून इसकी अनिवार्यता नहीं करता।
Q5. क्या बिना समारोह के विवाह हो सकता है?
हाँ। कोर्ट मैरिज में किसी धार्मिक समारोह की जरूरत नहीं होती। विवाह अधिकारी के सामने किया गया वैधानिक विवाह ही पर्याप्त होता है।
Q6. कोर्ट मैरिज में कितना समय लगता है?
सामान्यतः इसमें 30 से 45 दिन लगते हैं, जिसमें 30 दिन की नोटिस अवधि, विवाह की प्रक्रिया और प्रमाणपत्र जारी करना शामिल है।
Q7. क्या ऑनलाइन कोर्ट मैरिज संभव है?
कुछ राज्यों में आवेदन ऑनलाइन किया जा सकता है, लेकिन विवाह के समय जोड़े और गवाहों की शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य होती है। पूरी तरह से ऑनलाइन कोर्ट मैरिज भारत में मान्य नहीं है।
Q8. क्या एनआरआई जोड़े कोर्ट मैरिज कर सकते हैं?
हाँ। एनआरआई जोड़े भारत में कोर्ट मैरिज कर सकते हैं, बशर्ते उनमें से कम से कम एक व्यक्ति आवेदन से पहले भारत में 30 दिन रहा हो।
Q9. क्या बिना गवाह के कोर्ट मैरिज हो सकती है?
नहीं। कोर्ट मैरिज के लिए कम से कम तीन गवाहों की आवश्यकता होती है, जिनके पास वैध पहचान पत्र होना चाहिए।
Q10. क्या कोर्ट मैरिज घर पर हो सकती है?
सामान्यतः कोर्ट मैरिज विवाह अधिकारी के कार्यालय में की जाती है। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में और अतिरिक्त शुल्क देकर यह किसी अन्य निकट स्थान पर भी संपन्न की जा सकती है।
निष्कर्ष
कोर्ट मैरिज प्रक्रिया भारत में एक सरल, कानूनी और धर्मनिरपेक्ष तरीका है, जिससे जोड़े बिना किसी धार्मिक रस्म के विवाह कर सकते हैं। चाहे अंतरधार्मिक विवाह हो, अंतरजातीय हो या विदेशी नागरिक से विवाह हो—कोर्ट मैरिज सभी को कानूनी मान्यता और सुरक्षा प्रदान करती है।
यदि आप कोर्ट मैरिज का विचार कर रहे हैं, तो पात्रता शर्तों, आवश्यक दस्तावेज़ों और प्रक्रिया को समझना जरूरी है ताकि आप कानूनी औपचारिकताओं को आसानी से पूरा कर सकें। यह प्रक्रिया केवल वैध विवाह प्रमाणपत्र ही नहीं देती, बल्कि सामाजिक दबावों से भी सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे यह बिना झंझट वाला और सुरक्षित विकल्प बन जाती है।
क्या आप कोर्ट मैरिज के लिए विशेषज्ञ सहायता चाहते हैं? तो जुड़ें Rest The Case के साथ, जहाँ आपको स्टेप-बाय-स्टेप सहायता और दस्तावेज़ प्रक्रिया में सहयोग मिलेगा। अपनी कानूनी यात्रा को आसान और तनावमुक्त बनाएं।
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