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उपभोक्ता अधिनियम के तहत वकील द्वारा गुण-दोष के आधार पर बहस करने के बाद केस हार जाना 'सेवा में कमी' नहीं माना जा सकता - सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई वकील किसी मामले में गुण-दोष के आधार पर बहस करने के बाद हार जाता है, तो उसे उपभोक्ता अधिनियम के तहत 'सेवा में कमी' नहीं माना जा सकता, जिसके लिए उपभोक्ता शिकायत कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर मुकदमे में पक्ष या तो जीतते हैं या हारते हैं। ऐसी स्थिति में, हारने वाले पक्ष को अपने वकील की ओर से सेवा में कमी का दावा करते हुए उपभोक्ता फोरम में जाने की अनुमति नहीं है।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) द्वारा पारित आदेश के खिलाफ नंदलाल लोहारिया द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ता ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के खिलाफ जिला आयोग के समक्ष तीन उपभोक्ता शिकायतें दर्ज कीं। जिला आयोग ने इन तीनों शिकायतों को गुण-दोष के आधार पर खारिज कर दिया।

शिकायतों के खारिज होने के बाद याचिकाकर्ता ने उक्त शिकायतों में उसकी ओर से पेश हुए वकीलों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि तीनों वकील अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे। उक्त शिकायतें 630 दिनों की देरी से दायर की गई थीं। याचिकाकर्ता ने सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए तीनों वकीलों से 15 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की।

जिला आयोग ने अधिवक्ताओं के खिलाफ शिकायतों को खारिज कर दिया, तथा राज्य आयोग और एनसीडीआरसी ने भी इसे बरकरार रखा। पक्षों की सुनवाई के बाद, शीर्ष अदालत ने माना कि एनसीडीआरसी के फैसले में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि "जब शिकायत को गुण-दोष के आधार पर खारिज कर दिया जाता है और अधिवक्ताओं की ओर से कोई लापरवाही नहीं पाई जाती है, तो इसे अधिवक्ताओं की ओर से सेवा में कमी नहीं माना जा सकता।"


लेखक: पपीहा घोषाल