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बलात्कार के दौरान दर्द न होने का मतलब यह नहीं है कि कोई प्रवेश नहीं हुआ - मेघालय हाईकोर्ट
मेघालय उच्च न्यायालय ने कहा कि केवल इसलिए कि बलात्कार पीड़िता को अपने जननांग में दर्द महसूस नहीं हुआ, यह सबूत नहीं हो सकता कि प्रवेश नहीं हुआ था, जिससे आरोपी को बरी किया जा सके।
इस प्रकार मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति डब्ल्यू डिएंगदोह की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। निचली अदालत ने 2018 में अपीलकर्ता को 2006 में 10 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने के लिए दोषी ठहराया और उसे दस साल के कारावास की सजा सुनाई। अपीलकर्ता ने सजा के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि प्रवेश नहीं किया गया था और इस प्रकार बलात्कार के लिए आईपीसी की धारा 376 के तत्व आकर्षित नहीं हुए। अपीलकर्ता ने आगे कहा कि नाबालिग का अंडरवियर नहीं उतारा गया था और अपीलकर्ता ने केवल उसके ऊपर खुद को रगड़ा था और इसलिए यह बलात्कार नहीं माना जाएगा।
अपीलकर्ता ने आगे तर्क दिया कि जिरह के दौरान पीड़िता ने कहा कि उसे कोई दर्द महसूस नहीं हुआ। पीड़िता ने स्वीकार किया कि आरोपी ने केवल उसके कपड़ों के ऊपर से अपना गुप्तांग रगड़ा था। ट्रायल कोर्ट ने इस पहलू को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि भले ही नाबालिग की जिरह को सच मान लिया जाए, फिर भी यह संकेत नहीं देगा कि मेडिकल रिपोर्ट के प्रकाश में कोई पेनेट्रेटिव सेक्स नहीं हुआ था, जिसने अपराध की पुष्टि की थी।
अदालत ने यह संज्ञान लेते हुए दोषसिद्धि बरकरार रखी कि पीड़िता को मेडिकल जांच के समय दर्द महसूस हुआ था, जिससे यह स्थापित हो गया कि उसके साथ बलात्कार हुआ था।