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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को ट्रांसवुमन की मार्कशीट में नाम-लिंग बदलने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने राज्य सरकार और प्राधिकारियों को लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने वाली एक ट्रांसवुमन की शैक्षिक अंकतालिका में नाम और लिंग बदलने के लिए त्वरित कदम उठाने का निर्देश दिया।

हाल ही में सर्जरी करवाने वाली ट्रांसवुमन शिवन्या पांडे ने कोर्ट में याचिका दायर कर सर्टिफिकेट और मार्कशीट में अपना नाम और लिंग बदलने के निर्देश देने की मांग की है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि वह जेंडर डिस्फोरिया से पीड़ित हैं और 2017 में उन्होंने पुरुष से महिला बनने के लिए सर्जरी करवाई थी। लिंग परिवर्तन सर्जरी के बाद उनका पैन कार्ड और आधार कार्ड उसी के अनुसार जारी किया गया। इसके बाद उन्होंने अपने स्कूल की मार्कशीट में अपना नाम और लिंग बदलने के लिए आवेदन किया, लेकिन राज्य के अधिकारियों ने अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 6(1) पर भरोसा किया। इसने माना कि याचिकाकर्ता को उसके लिंग परिवर्तन के मद्देनजर उचित प्रमाण पत्र जारी करने की अनुमति है। जिस पर राज्य ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने 2019 अधिनियम से पहले लिंग-पुनर्निर्धारण सर्जरी करवाई थी और इसलिए वह हकदार नहीं है।

पक्षों को सुनने के बाद, न्यायालय ने प्रारंभ में टिप्पणी की:

"इस अधिनियम को लागू करने का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समानता प्रदान करना है। यह अधिनियम एक सामाजिक रूप से लाभकारी कानून है और इसलिए, इसकी ऐसी व्याख्या नहीं की जा सकती जो उसी उद्देश्य को विफल कर दे। इसकी व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए जिससे उद्देश्य प्राप्त हो।" न्यायालय ने अधिनियम की धारा 7 का भी अवलोकन किया और याचिकाकर्ता को जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 7 के तहत आवेदन प्रस्तुत करने की अनुमति दी।


लेखक: पपीहा घोषाल